सिरसा: खराब नींद केवल अगले दिन थकान ही नहीं लाती, बल्कि यह सीधे ब्रेन हेल्थ को प्रभावित कर सकती है और समय के साथ अल्ज़ाइमर डिसीज़ का खतरा भी बढ़ा सकती है। अच्छी और गहरी नींद ब्रेन से विषैले तत्वों को बाहर निकालने, याददाश्त को मजबूत करने और ब्रेन सेल्स के बीच हेल्थी कम्युनिकेशन बनाए रखने में मदद करती है।
लेकिन जब यह प्रक्रिया बार-बार बाधित होती है तो ब्रेन मेमोरी लॉस और डिमेंशिया जैसी समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है। नींद और ब्रेन स्वास्थ्य के बीच संबंध को समझना आपको अपनी याददाश्त बचाने और अल्ज़ाइमर के खतरे को कम करने के लिए बेहतर कदम उठाने में मदद कर सकता है।
मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, द्वारका के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रिंसिपल डायरेक्टर एवं यूनिट हेड डॉ. रजनीश कुमार, ने बताया कि “नींद केवल आराम करने का साधन नहीं है, बल्कि यह एक सक्रिय प्रक्रिया है जिसमें ब्रेन कई महत्वपूर्ण कार्य करता है। गहरी नींद के दौरान ब्रेन बीटा-एमिलॉइड जैसे विषैले प्रोटीन को साफ करता है, शार्ट टर्म एक्सपीरिएंसेस को लॉन्ग टर्म मेमोरीज में बदलता है, और ब्रेन सेल्स की ऊर्जा को पुनःस्थापित करता है। यदि नींद लगातार खराब रहती है तो बीटा-एमिलॉइड और टाऊ प्रोटीन ब्रेन में जमा होकर प्लाक और टेंगल्स बना सकते हैं, जो अल्ज़ाइमर की मुख्य पहचान मानी जाती हैं। इसके अलावा नींद की कमी ब्रेन में सूजन बढ़ाती है, ब्लड-ब्रेन बैरियर को कमजोर करती है और नई मेमोरीज बनाने की क्षमता को घटाती है। गहरी नींद के दौरान सक्रिय रहने वाली ग्लिम्फैटिक सिस्टम भी बाधित होती है, जिससे ब्रेन में विषैले तत्व इकट्ठा होने लगते हैं।“
अच्छी नींद और मेमोरी का गहरा संबंध है। नींद के दौरान ब्रेन जानकारी को दोहराता और व्यवस्थित करता है, जिससे छोटी यादें लंबी अवधि तक बनी रहती हैं। यदि नींद पर्याप्त न हो तो एकाग्रता घटती है, भूलने की समस्या बढ़ती है और निर्णय लेने की क्षमता कमजोर होती है। धीरे-धीरे ये बदलाव कॉग्निटिव डिक्लाइन और डिमेंशिया के शुरुआती लक्षणों जैसे दिखने लगते हैं।
डॉ. रजनीश ने आगे बताया कि “60 वर्ष की उम्र के बाद नींद के पैटर्न अक्सर बदल जाते हैं। इस उम्र में अनिद्रा, स्लीप एपनिया, रेस्टलेस लेग सिंड्रोम और बार-बार नींद खुलने जैसी समस्याएँ आम हो जाती हैं। यदि इनका इलाज न किया जाए तो जीवन की गुणवत्ता घटने के साथ-साथ अल्ज़ाइमर का खतरा भी बढ़ सकता है। ब्रेन को स्वस्थ रखने के लिए अच्छी नींद की आदतें विकसित करना आवश्यक है। इसके लिए शयनकक्ष को शांत, ठंडा और अंधेरा रखें, सहायक गद्दे और तकिए का प्रयोग करें तथा सोने से एक घंटा पहले स्क्रीन से दूर रहें। नियमित समय पर सोने और जागने की आदत डालें, ध्यान, हल्के व्यायाम या गहरी साँस लेने जैसी तकनीकें अपनाएँ, कैफीन और अल्कोहल सीमित करें तथा रोज़ाना कम से कम 30 मिनट का शारीरिक व्यायाम करें। यदि स्लीप एपनिया या अन्य नींद संबंधी विकार हों तो विशेषज्ञ से परामर्श लेना बेहद ज़रूरी है।“
जीवनशैली में संतुलित आहार, मानसिक सक्रियता (जैसे पढ़ना, पज़ल हल करना या नई चीज़ें सीखना), सामाजिक संबंध बनाए रखना और मधुमेह, उच्च रक्तचाप तथा मोटापे जैसी पुरानी बीमारियों को नियंत्रित करना भी ब्रेन को अल्ज़ाइमर से सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
खराब नींद और अल्ज़ाइमर का खतरा एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं, लेकिन अच्छी बात यह है कि नींद की आदतों में सुधार करके इस जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है। गहरी और आरामदायक नींद ब्रेन को साफ, मजबूत और सक्रिय बनाए रखती है। छोटे-छोटे बदलाव अपनाकर आप अपनी याददाश्त की रक्षा कर सकते हैं और स्वस्थ बुढ़ापे की ओर कदम बढ़ा सकते हैं।